ईमानदारी का फल
ईमानदारी का फल | Imandaari ka Phal Story in Hindi |
बात 1890 के आस पास की है| एक गांव में एक लड़का रहता था| उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी| उसके मन में विचार आया किसी बड़े शहर में जाकर नौकरी करे| वह कलकत्ता गया और नौकरी ढूंढने लगा| बहुत खोज के बाद उसे एक सेठ के घर नौकरी मिल गयी| नौकरी छह आने रोज़ की थी| काम था सेठ को रोज़ 4 घंटे अख़बार और किताब पढ़कर सुनाना| लड़के को नौकरी की ज़रूरत थी तो उसने वह नौकरी स्वीकार कर ली|
एक दिन की बात है लड़के को दुकान के कोने में 100-100 के 8 नोट पड़े मिले| उसने चुपचाप उन्हें अख़बार और किताबों से ढक दिया| दूसरे दिन रुपयों की खोजबीन हुई| लड़का सुबह जब दुकान पर आया तो उससे पूछा गया| लड़के ने तुरंत ही प्रसन्नता से रुपये निकालकर ग्राहक को दे दिए| वह बहुत ही खुश हुआ| लड़के के ईमानदारी से सबको बहुत प्रसन्नता हुई|
सेठ भी लड़के से बहुत खुश हुआ| सेठ ने लड़के को पुरस्कार देना चाहा तो लड़के ने लेने से मना कर दिया| लड़के ने कहा सेठ जी में आगे पढ़ना चाहता हूँ| पर पैसों के अभाव में पढ़ नहीं पा रहा| आप कुछ सहायता कर दें|
सेठ ने लड़के की पढ़ाई का प्रबंध कर दिया| लड़का बहुत मेहनत से पढ़ता गया| यही लड़का आगे चलकर बहुत बड़ा साहित्यकार बना| इसका नाम था – राम नरेश त्रिपाठी। हिंदी साहित्य में इनका बहुत बड़ा योगदान है|
कहानी से शिक्षा (Moral of the story)
दोस्तों! हमारा जीवन हमारे हाथ में है या तो हम लालच में पड़कर तुरंत होने वाले लाभ को देख लें| या अपने विवेक से काम लें और ईमानदारी के रास्ते पर चलकर आगे बढ़ें|
निर्णय हमारा होता है और एक बात तो सत्य है कि गलत काम का अंजाम अन्त में गलत ही होता है| चाहे उस समय हमें कितना भी फायदा दिख रहा हो| अगर वह बच्चा 800 रुपये को यह सोचकर अपने पास ही रख लेता कि किसी को क्या पता चलेगा| तो मात्र 800 रुपए के चक्कर में ज़िंदगी भर अनपढ़ रहता| और अपनी ही नज़र में धीरे-धीरे गिरता जाता| इसलिए कोई भी कार्य हमेशा ईमानदारी से करना चाहिए क्योंकि जो लोग ईमानदार होते हैं उन्हें ईमानदारी का फल ज़रूर मिलता है |
Imandaari Ka Phal Story in Hindi