विद्वान ब्राह्मण की कहानी | Vidvaan Brahman Story in Hindi | Moral Story

विद्वान ब्राह्मण की कहानी

विद्वान ब्राह्मण की कहानी | Vidvaan Brahman Story in Hindi
विद्वान ब्राह्मण की कहानी | Vidvaan Brahman Story in Hindi


राजा भोज के नगर में एक विद्वान ब्राह्मण रहता था। एक दिन गरीबी से परेशान होकर उसने राजभवन में चोरी करने का निश्चय किया। रात में ब्राह्मण वहां पहुंचा। सिपाहियों की नजरों से बचते हुए, वह राजा के कक्ष तक पहुंच गया। वहां स्वर्ण, रत्न, बहुमूल्य पात्र इधर-उधर पड़े थे। किन्तु वह जो भी वस्तु उठाने का विचार करता, उसका शास्त्र-ज्ञान उसे रोक देता।

ब्राह्मण ने जैसे ही स्वर्ण-राशि उठाने का विचार किया। मन में स्थित शास्त्र ने कहा, ‘स्वर्ण-चोर नर्कगामी होता है। जो भी वह लेना चाहता, उसी की चोरी को पाप बताने वाले शास्त्रीय वाक्य उनकी स्मृति में जाग उठते। रात बीत गई। पर ब्राह्मण चोरी नहीं कर पाया। सुबह पकड़े जाने के भय से ब्राह्मण राजा के पलंग के नीचे छिप गया।

राजा के जागने पर रानियां व दासियां उनके अभिवादन हेतु प्रस्तुत हुईं। राजा भोज के मुंह से किसी श्लोक की तीन पंक्तियां निकलीं। फिर अचानक वे रुक गए। शायद चौथी पंक्ति उन्हें याद नहीं आ रही थी। विद्वान ब्राह्मण से रहा नहीं गया। चौथी पंक्ति उन्होंने पूर्ण की। महाराज चौंके और ब्राह्मण को बाहर निकलने को कहा।

जब ब्राह्मण से भोज ने चोरी न करने का कारण पूछा तो वे बोले, ‘राजन, मेरा शास्त्र ज्ञान मुझे रोकता रहा। उसी ने मेरी धर्म-रक्षा की।’ राजा बोले, ‘सत्य है कि ज्ञान ही उचित-अनुचित का बोध कराता है। ज्ञान का धर्म-संकट के क्षणों में उपयोग कर उचित राह पाई जा सकती है। राजा ने ब्राह्मण को प्रचुर धन देकर सदा के लिए उसकी निर्धनता दूर कर दी।

कहानी से शिक्षा (Moral Of The Story)

ज्ञान ही उचित-अनुचित का बोध कराता है। ज्ञान का धर्म-संकट के क्षणों में उपयोग कर उचित राह पाई जा सकती है।

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