सोच का फर्क
सोच का फर्क | Soch Ka Fark Story In Hindi | Moral Story |
एक शहर में एक बहुत धनी व्यक्ति रहता था। उसके पास बहुत पैसा था। उसे इस बात पर बहुत घमंड भी था। एक बार किसी वजह से उसकी आँखों में इंफेक्शन हो गया।
जिस कारण उसकी आँखों में बुरी तरह जलन होती थी। वह डॉक्टर के पास गया लेकिन डॉक्टर भी उसकी इस बीमारी का इलाज नहीं कर पाया। सेठ के पास बहुत पैसा था। उसने देश-विदेश से बहुत सारे नीम-हकीम और डॉक्टर बुलाए।
एक बड़े डॉक्टर ने बताया की आपकी आँखों में एलर्जी हो गयी है। आपको कुछ दिन तक केवल हरा रंग ही देखना होगा और कोई दूसरा रंग देखेंगे तो आपकी आँखों को परेशानी होगी।
अब क्या था। सेठ जी ने बड़े-बड़े पेंटरों को बुलाया और पूरे महल को हरे रंग से रंगने के लिए कहा। वह बोला- मुझे हरे रंग के अलावा कोई दूसरा रंग दिखाई नहीं देना चाहिए। मैं जहाँ भी घूमने जाऊँ, वो जगह हरा ही दिखना चाहिए।
इस काम में बहुत पैसा खर्च हो रहा था लेकिन फिर भी सेठ जी की नज़र किसी अलग रंग पर पड़ ही जाती थी। क्यूंकी पूरे शहर को हरे रंग से रंगना संभव ही नहीं था। सेठ हर रोज पेंट कराने के लिए पैसा खर्च करता जा रहा था।
वहीं शहर से एक सज्जन पुरुष गुजर रहा था। उसने चारों तरफ हरा रंग देखकर लोगों से इसका कारण पूछा। सारी बात सुनकर वह सेठ के पास गया और बोला सेठ जी, आपको इतना पैसा खर्च करने की ज़रूरत नहीं है मेरे पास आपकी परेशानी का एक आसान सा हल है। आप हरा चश्मा क्यूँ नहीं खरीद लेते फिर सब कुछ हरा हो जाएगा।
सेठ की आँख खुली की खुली रह गयी। उसके दिमाग में यह शानदार विचार आया ही नहीं था। वह बेकार में इतना पैसा खर्च किए जा रहा था।
कहानी से शिक्षा (Moral Of The Story)
सोच का फर्क हमारे जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव डालता है। कभी यह हमारे हर मुश्किल को आसान कर देता है तो कई बार परेशानी का हल बहुत आसान होते हुए भी हम उस परेशानी में फंसे रहते हैं। इसे कहते हैं- सोच का फर्क। अपनी सोच में सकारात्मक बदलाव लाकर हम अपने जीवन को आसान बना सकते हैं। जीवन में हमारी सोच और देखने के नज़रिए पर भी बहुत सारी चीजें निर्भर करती है क्योंकि हमारा जीवन हमारी सोच पर निर्भर करता है।
Soch Ka Fark Story In Hindi