जो भी बोलें सोच – समझ कर बोलें | Jo Bhi Bolein - Soch Samajh Kar Bolein Story in Hindi | Moral Story

जो भी बोलें सोच – समझ कर बोलें

जो भी बोलें सोच – समझ कर बोलें | Jo Bhi Bolein - Soch Samajh Kar Bolein Story in Hindi | Moral Story
जो भी बोलें सोच – समझ कर बोलें |  | Moral Story

एक मुर्ख बिना सोचे – समझे कुछ भी बोल देता है, पर एक बुद्धिमान सोच - विचार कर ही कुछ कहता है |

जो मन में आये, वही बोलने से बाद में आदमी को वह सुनना पड़ता है, जो उसे पसंद नहीं होता | बोलने और व्यवहार करने में चतुर बने | इसका तात्पर्य यह है कि हम कुछ कहते वक्त अपने शब्दों का चुनाव होशियारी और समझदारी से करे |

साथ ही इस बात का अनुमान भी हमें होना चाहिए कि उस बोलने का क्या परिणाम निकलेगा | अगर हम यह अनुमान लगाने में सक्षम होंगे, तो हम आसानी से विचार कर सकते है कि हमें क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं बोलना चाहिए |

बोलने की कला और व्यवहार कुशलता के बगैर प्रतिभा हमेशा हमारे काम नहीं आ सकती | शब्दों से हमारा नजरिया झलकता है | शब्द दिलों को जोड़ सकते है, तो हमारी भावनाओ को चोट भी पहुंचा सकते है और रिश्तों में दरार भी पैदा कर सकते है | सोच कर बोले, न की बोल के सोचे | समझदारी और बेवकूफी में यही बड़ा फर्क है |

आइये इस बात को एक कहानी के माध्यम से समझते है-

एक व्यक्ति ने एक पादरी के सामने अपने पड़ोसी की खूब निंदा कि | बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो वह पुनः पादरी के पास पहुंचा और उस गलती के लिए क्षमा याचना करने लगा |  पादरी ने उससे कहा कि वह पंखो से भरा एक थैला शहर के बीचोबीच बिखेर दे. उस व्यक्ति ने पादरी कि बात सुनकर ऐसा ही किया और फिर पादरी के पास पहुँच गया |

उस व्यक्ति की बात सुनकर पादरी ने उससे कहा कि जाओ और उन सभी पंखो को फिर से थैले में भरकर वापस ले आओ | वह व्यक्ति थोड़ा हिचका पर पादरी का आदेश मानते हुए उसने ऐसा करने की कोशिश की | काफी प्रयत्न करने के बाद भी वह सभी पंखो जमा नहीं कर सका | जब आधा भरा थैला लेकर वह पादरी के सामने पहुंचा तो पादरी ने उससे कहा की यही बात हमारे जीवन में भी लागू होती है |

जिस तरह तुम पंख वापस नहीं ला सकते, उसी तरह तुम्हारे कटु वचन को भी वापस नहीं किया जा सकता | उस व्यक्ति का जो नुकसान हुआ है, अब उसकी भरपाई संभव नहीं है | आलोचना का मतलब नकारात्मक बातें करना और शिकायत करना ही नहीं होता बल्कि आलोचना सकारात्मक भी हो सकती है | आपकी कोशिश यह होनी चहिये की आपकी आलोचना से, आपके द्वारा सुझाये विचारो से उसकी सहायता हो जाएँ |

दोस्तों कई बार देखा गया है कि माँ – बाप के द्वारा बच्चो से की गई बातचीत का ढंग उनके भविष्य कि रूपरेखा भी तय कर देता है | इसलिए घर से लेकर बाहर तक कुछ भी कहने में सावधानी बरतें | यही बात दोस्तों के साथ होने वाली बातचीत में भी लागू होती है और ऑफिस या इंटरव्यू के दौरान भी लागू होती है | इसलिए अगर आप समझ कर बोलेंगे तो हमेशा फायदे में रहेंगे |

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